दुर्गा सप्तशती अध्याय 9 और 10 | कथा शुम्भ और निशुम्भ का वध दुर्गा द्वारा

दुर्गा सप्तसती अध्याय नवा और दसवा : एक बार शुम्भ निशुम्भ नामक पराक्रमी दैत्यों से तीनो लोको में आतंक था । दुखी देवता जगमाता गौरी के पास पहुँच कर सहायता की विनती करने लगे । तब गौरी के शरीर से एक कुमारी प्रकट हुई जो शरीर कोष से निकली होने से कौशिकी भी कहलाई , और माता के शरीर से प्रकट होने से मातंगी भी कहलाई । देवताओं को आश्वस्त कर उग्रतारा देवी सिंह पर स्वर हो कर हिमालय के शिखर पर पहुँच कर तीव्र हुंकार भरी |



शुम्भ निशुम्भ के दो सेवकों - चंड और मुंड ने उस रूपवती और ऐश्वर्य से संपन्न अम्बिका को देखा और अपने स्वामी के पास जाकर उस देवी के साथ विवाह का प्रस्ताव रख दिया |
इतनी सुन्दर कन्या से शुम्भ निशुम्भ विवाह के लिए तैयार हो चूका था अत: उसने अपने दूत को उस देवी के पास हिमालय भेजा |


पहले दूत धूम्रलोचन का वध हुआ जब उसने महाशक्ति की अवेहलना की | फिर उसके आये चण्ड मुण्ड का वध माँ चामुंडे ने किया उसके बाद रक्तबीज का नाश महाकाली ने किया |


अंत में दोनों भाई शुम्भ और निशुम्भ ने जब अपने महान शक्तिशाली दैत्यों का संहार होते देखा तब उन्हें ही युद्ध के लिए माँ भगवती के पास पर्वत पर आना पड़ा | शुम्भ ने अपने भाई निशुम्भ को आदेश दिया की तुम जाकर उस स्त्री को मेरे समक्ष पेश करो | आज्ञा पाकर निशुम्भ ने देवी के पास पहुंचा और बोला की हे कोमलवान और रूपवान शरीर से संपन्न युवती क्यों युद्ध के चक्कर में फंसी हो | तुम हमहें समर्प्रित हो जाओ और तुम्हे दैत्यराज की महारानी बना दिया जायेगा |

यह सुनकर देवी ने वाचाल शुम्भ को सीधे सीधे युद्ध के लिए ललकारा | । निशुम्भ ने अपने समस्त शस्त्रों से देवी पर आक्रमण किये पर सभी शास्त्र देवी के सामने तुच्छ साबित हुए | अब देवी ने उसे शक्तिविहीन कर उसका वध कर दिया |

अपने भाई के वध के समाचार सुनकर शुम्भ अति क्रोध से देवी चंडिका को लपका | देवी चंडिका ने उसे अपने त्रिशूल से संहार कर दिया और इस तरह शुम्भ और निशुम्भ और उनकी समस्त दैत्य सेना का अंत हुआ | देवताओ को पुनः स्वर्ग की प्राप्ति हुई और देवी माँ के जयकारो से तीनो लोक गुंजायमान हो उठा |

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